Friday, January 12, 2018

लोहड़ी के त्यौहार का इतिहास एवं महत्व

क्या आप लोहड़ी के त्यौहार का इतिहास एवं महत्व से परिचित हैं
जनवरी महीना पुरे भारत वर्ष के लिए त्योहार लेकर आता है।
उत्तर भारत में पंजाबी समुदायलोहरी, दक्षिण भारत के लोग पोंगल और असम में बिहू पर्व मनाया जाता है।जबकि समस्त भारत के लोग मकर संक्रांति पर्व मानते है। इस तरह नया साल सबके जीवन में ढेर सारी खुशिया लेके आता है। इस तरह लोहरी की कथा सम्पन्न हुई।

पंजाब समेत उत्तर भारत में शुक्रवार को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जा रहा है। इस त्यौहार पर लोग ढोल-नगाड़ों की धुन पर डांस मस्ती करते हैं। लोहड़ी के दिन शाम के समय लकड़ियों की ढेरी बना कर उसमें सूखे उपले रखकर विशेष पूजन के साथ लोहड़ी जलाई जाती है। तिल, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली, गजक का भोग लगा कर लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। ऐसा करके सूर्य देव और अग्नि के प्रति आभार प्रकट किया जाता है ताकि उनकी कृपा से कृषि में उन्नत हो।
लोहड़ी | मकर संक्रान्ति पर्व

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में ‘लोहड़ी’ नाम से मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा है कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता लोहड़ी है?

यह त्यौहार सर्दियों के जाने और बंसत के आने का संकेत है। इसलिए लोहड़ी की रात सबसे ठंडी मानी जाती है। इस दिन पंजाब में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। लोहड़ी को फसलों का त्यौहार भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पहली फसल कटकर तैयार होती है। पवित्र अग्नि में कुछ लोग अपनी रवि फसलों को अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से फसल देवताओं तक पहुंचती है।
कैसे मनाया जाता लोहड़ी है?

इस त्यौहार को पंजाब समेत उत्तर भारत के लोग खूब मौज मस्ती के साथ मनाते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उनके यहां लोहड़ी बेहद धूम धड़ाके से मनाई जाती है। कुछ लोग लोकगीत गाते हैं, महिलाएं गिद्दा करती हैं तो कुछ रेवड़ी, मूंगफली खाकर नाचते-गाते हैं। तो कहीं पूरा परिवार एक साथ मिलकर आग जलाकर, अग्निदेव से अपने परिवार की सुख शांति की कामना करता है।

संजीव भाई, स्वदेशी भारतीय संस्कृति : लोहड़ी भारतीय संस्कृति में छोटी- छोटी खुशियों का संग्रह है जिंदगी। मनुष्य ने मौसम, दिन, वातावरण, रीति- रिवाज, रिश्ते-नाते, प्यार -मोहब्बत, लगाव तथा परंपराओं आदि को ध्यान में रखते हुए हर्ष और उल्लास के अवसर के रूप में मेलों और त्योहारों का आयोजन शुरू किया। इन्हीं सब वजहों से हमारे त्योहार अस्तित्व में आए। अगर मनुष्य की जिंदगी से इन उत्सवपूर्ण दिनों को हटा दिया जाए तो उसकी सामाजिक जिंदगी बेहद नीरस और फीकी हो जाएगी।
भारत के किन राज्यो में मनाया जाता लोहड़ी है?

मैंने महाराष्ट्र ,पंजाब, हिमाचल ,उत्तराखंड ,तमिलनाडु आदि प्रान्तों का मकरसंक्रांति लोहड़ी का उत्सव देखने का अवसर मिला है ।
लोहड़ी शब्द लोही से बना है, जिसका अभिप्राय है वर्षा होना, फसलों का फूटना। एक लोकोक्ति है कि अगर लोहड़ी के समय वर्षा न हो तो खेती का नुकसान होता है। इस तरह यह त्योहार बुनियादी तौर पर मौसम के बदलाव तथा फसलों के बढ़ने से जुड़ा है। इस समय तक किसान हाड़ कंपाने वाली सर्दी में अपने जुताई-बुवाई जैसे सारे फसली काम कर चुके होते हैं। अब सिर्फ फसलों के बढ़ने और उनके पकने का इंतजार करना होता है। इसी समय से सर्दी भी घटने लगती है। इसलिए किसान इस त्योहार के माध्यम से इस सुखद, आशाओं से भरी परिस्थितियों को सेलिब्रेट करते हैं। पंजाब कृषि प्रधान राज्य है, वहां लोढ़ी किसानों, जमींदारों एवं मजदूरों की मेहनत का पर्याय है। वहां इसे सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाते हैं।

लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। किसान सर्द ऋतु की फसलें बो कर आराम फरमाता है। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवड़ियां, चिवड़े, गजक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के भुने दाने, गुड़, फल इत्यादि खाने और बांटने के लिए रखे जाते हैं। गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है और उसे दही के साथ खाया जाता है। ये सारी चीजें इसी मौसम की उपज होती हैं और अपनी तासीर से शरीर को गर्मी पहुंचाती हैं।

इस दिन घरों के आंगनों, संस्थाओं, गलियों, मुहल्लों, बाजारों में खड़ी लकड़ियों के ढेर बना कर या उपलों का ढेर बना कर उस की आग जलाते हैं और उसे सेंकने का लुत्फ लेते हैं। चारों ओर बिखरी सर्दी तथा रुई की भांति फैली धुंध में आग सेंकने और उसके चारों ओर नाचने-गाने का अपना ही आनंद होता है। लोग इस आग में भी तिल इत्यादि फेंकते हैं। घरों में पूरा परिवार बैठकर हर्ष की अभिव्यक्ति के लिए गीत गायन करता है। देर रात तक ढोलक की आवाज, ढोल के फड़कते ताल, गिद्दों-भंगड़ों की धमक तथा गीतों की आवाज सुनाई देती रहती है। रिश्तों की सुरभि तथा आपसी प्यार का नजारा चारों ओर देखने को मिलता है। एक संपूर्ण खुशी का आलम।
साभार-https://tours-package.com

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